आधी जनता भूखी सोती है ,तो सोने दो
"गरीबी कम हो गया " का नारा तुम बुलंद करो.।
महंगाई ,बेरोजगारी से परेशाँ है गरीब... तो क्या ?
गरीब होते ही है परेशाँ के लिए ,तुम फ़िक्र ना करो।
अनाज के भण्डार पानी में सड़ता है... सड़ने दो
अनाज को बचाने की तुम फ़िक्र ना करो.।
भूख से किसान तड़फ तड़फ कर मरता है... मरने दो
उसके भूख मिटाने की तुम फ़िक्र ना करो।
बटर चिकेन, क्रीम- पुडिंग से तूम डिनर किया करो
सुखी रोटी भी किसान को नसीब हो न हो ,फ़िक्र ना करो.।
कुपोषण ,बिमारी से किसान हो गया हड्डी का ढांचा
उसके स्वस्थ सुधारने की उपाय की तुम फ़िक्र ना करो.।
फटे पुराने कपड़ों से इज्जत ढँक रहा है किसान
उनकी बहु बेटियों की इज्जत की तुम फ़िक्र ना करो.।
कुत्ते के नसीब में है ब्रेड बिस्कुट ,इंसान के नसीब में है भूख
कुत्ते के लिए भारत चमकाओ, इंसान का तुम फ़िक्र ना करो।
बेदर्द हाकिम है "प्रसाद", जितना चाहे फरियाद कर लो
मक्कारी से अपना घर भर लो ,जन कल्याण की फ़िक्र ना करो.।
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
निःशब्द चित्र और रचना
ReplyDeleteभाई बहन के पावन प्रेम के प्रतीक रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ.!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज बुधवार (21-08-2013) को हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े- चर्चा मंच 1344... में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मयंक जी ! चर्चा मंच में सामिल करने के लिए हार्दिक आभार के साथ रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनायें
Deleteइन नेताओं की कितनी भी बखिया
ReplyDeleteउधेड़ दी जाये उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता
सादर
एक बकरा घूम रहा है पूरे देश में -
ReplyDeleteबीच बीच में मिमियाता है अनर्थक कुछ बोलता भी है बाजू ऊपर चढ़ाता है -
चुनाव निकट है तुम फ़िक्र न करो -
खैरात बांटने वालों को वोट न दो।
धूल चटा दो इन काले धनियों को जिनकी करतूतें काली हैं।
तिहाड़ से भी ये गन्दी नाली हैं।
तुम फ़िक्र न करो इनकी अम्मा भी कब तक खैर मनायेगी -
बकरे के लिए मिमियाएगॆ।
बढ़िया रचना है तुम फ़िक्र न करो।
एक बकरा घूम रहा है पूरे देश में -
ReplyDeleteबीच बीच में मिमियाता है अनर्थक कुछ बोलता भी है बाजू ऊपर चढ़ाता है -
चुनाव निकट है तुम फ़िक्र न करो -
खैरात बांटने वालों को वोट न दो।
धूल चटा दो इन काले धनियों को जिनकी करतूतें काली हैं।
तिहाड़ से भी ये गन्दी नाली हैं।
तुम फ़िक्र न करो इनकी अम्मा भी कब तक खैर मनायेगी -
बकरे के लिए मिमियाएगी
बढ़िया रचना है तुम फ़िक्र न करो।
आपकी सुन्दर टिप्पणी के लिए आभार वीरेंद्र भाई
Deleteप्रभाबशाली रचना। बधाई। कभी यहाँ भी पधारें।
ReplyDeleteसादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
सटीक रचना !!
ReplyDeleteक्या बात है, बहुत सुंदर
ReplyDeleteबेहतरीन और सटीक रचना.
ReplyDeleteरामराम.
नेता जी को वैसे भी काहे की फ़िक्र ... जीतें न जीतें कुर्सी फिर भी मिल जाती है उन्हें ... सटीक लिखा है ...
ReplyDeleteसत्य कथन दिगंबर जी....और उन्हें कुर्सी हम व हम जैसे लोग ही देते हैं...
Deleteनेताजी फ़िक़्र न करो...
वाह !
नेताजी तो आपकी बात पर पूरा अमल कर रहे हैं आदरणीय कालीपद प्रसाद जी
:)
❣ मंगलकामनाओं सहित...❣
♥ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं ! ♥
-राजेन्द्र स्वर्णकार
क्या बात है भाई जी-
ReplyDeleteबढ़िया-
बहुत ही सही कटाक्ष !
ReplyDeleteबहुत सार्थक लेखन ..
दिल से बधाई स्वीकार करे.
विजय कुमार
मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com
मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com
bahut badhiyaan rachna ....sahi kataksh
ReplyDeleteआज के नेताओं की मानसिकता एवँ आम जनता के सही हालातों का वास्तविक चित्रण उकेर दिया है रचना में आपने ! बहुत ही बढ़िया रचना ! रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteनेता जी को तो बस कुर्सी की फ़िक्र होती है, बहुत ही सुंदर सटीक लिखा है आपने, शुभकामनाये
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/08/blog-post_6131.html
achhe bhav hain Kaliprasad ji ...... chinta aam aadmi ki aam admi hi karta hai bas ...... netaon ko kahan fikr hai........
ReplyDeleteसन्नाट अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबेहद सुन्दर रचना कालीपद प्रसाद जी, आपके इस ब्लॉग पर शायद पहली बार मेरा आगमन हो रहा है। मुझे आपके ब्लॉग पर काफी पहले ही आ जाना चाहिए था, यह मेरी नादानी ही समझिये। बहरहाल देर से ही सही अंततः आ ही गया। शानदार ब्लॉग है आपका एंव रचनाएँ भी बेहद सुन्दर है। आभार सहित।
ReplyDelete------मनोज जैसवाल------
मनोज जैसवाल जी, ब्लॉग में आने के लिए और टिप्पणी देने के लिए आभार !.आगे भी आपके आगमन की प्रतीक्षा रहेगी
ReplyDeleteनेताजी ने कब कहा कि गेहूं को सडने दो....क्या अफसर, कर्मिकजन....जो आम जनता का भाग हैं दोषी नहीं हैं...
ReplyDeletesarthak, prabhavshali rachna Kalipad ji.
ReplyDeleteबहुत सटीक रचना
ReplyDeleteशब्दों की मुस्कराहट पर....तभी तो हमेशा खामोश रहता है आईना !!