Tuesday 20 August 2013

नेताजी फ़िक्र ना करो!





आधी जनता भूखी सोती है ,तो सोने दो
"गरीबी कम हो गया " का नारा तुम बुलंद करो.।

महंगाई ,बेरोजगारी से परेशाँ  है गरीब... तो क्या ?
गरीब होते ही है परेशाँ के लिए ,तुम फ़िक्र ना करो।

अनाज के भण्डार पानी में सड़ता है... सड़ने दो
अनाज को बचाने की तुम फ़िक्र ना करो.।

भूख से किसान तड़फ तड़फ कर मरता है... मरने दो
उसके भूख मिटाने की तुम  फ़िक्र ना करो।

बटर चिकेन, क्रीम- पुडिंग से तूम  डिनर किया करो
सुखी रोटी भी किसान को नसीब हो न हो ,फ़िक्र ना करो.। 

कुपोषण ,बिमारी से किसान हो गया हड्डी का ढांचा
उसके स्वस्थ सुधारने की उपाय की तुम फ़िक्र ना करो.।

फटे पुराने कपड़ों से इज्जत ढँक रहा है किसान
उनकी बहु बेटियों की इज्जत की तुम फ़िक्र ना करो.।

कुत्ते के नसीब में है ब्रेड बिस्कुट ,इंसान के नसीब में है भूख
कुत्ते के लिए भारत चमकाओ, इंसान का तुम फ़िक्र ना करो। 

बेदर्द हाकिम है "प्रसाद", जितना चाहे फरियाद कर लो
मक्कारी से अपना घर भर लो ,जन कल्याण की फ़िक्र ना करो.।

कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित

27 comments:

  1. निःशब्द चित्र और रचना

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  2. भाई बहन के पावन प्रेम के प्रतीक रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ.!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज बुधवार (21-08-2013) को हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े- चर्चा मंच 1344... में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. मयंक जी ! चर्चा मंच में सामिल करने के लिए हार्दिक आभार के साथ रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनायें

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  3. इन नेताओं की कितनी भी बखिया
    उधेड़ दी जाये उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता
    सादर

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  4. एक बकरा घूम रहा है पूरे देश में -

    बीच बीच में मिमियाता है अनर्थक कुछ बोलता भी है बाजू ऊपर चढ़ाता है -

    चुनाव निकट है तुम फ़िक्र न करो -

    खैरात बांटने वालों को वोट न दो।

    धूल चटा दो इन काले धनियों को जिनकी करतूतें काली हैं।

    तिहाड़ से भी ये गन्दी नाली हैं।

    तुम फ़िक्र न करो इनकी अम्मा भी कब तक खैर मनायेगी -

    बकरे के लिए मिमियाएगॆ।

    बढ़िया रचना है तुम फ़िक्र न करो।

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  5. एक बकरा घूम रहा है पूरे देश में -

    बीच बीच में मिमियाता है अनर्थक कुछ बोलता भी है बाजू ऊपर चढ़ाता है -

    चुनाव निकट है तुम फ़िक्र न करो -

    खैरात बांटने वालों को वोट न दो।

    धूल चटा दो इन काले धनियों को जिनकी करतूतें काली हैं।

    तिहाड़ से भी ये गन्दी नाली हैं।

    तुम फ़िक्र न करो इनकी अम्मा भी कब तक खैर मनायेगी -

    बकरे के लिए मिमियाएगी

    बढ़िया रचना है तुम फ़िक्र न करो।

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    1. आपकी सुन्दर टिप्पणी के लिए आभार वीरेंद्र भाई

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  6. प्रभाबशाली रचना। बधाई। कभी यहाँ भी पधारें।
    सादर मदन
    http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

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  7. बेहतरीन और सटीक रचना.

    रामराम.

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  8. नेता जी को वैसे भी काहे की फ़िक्र ... जीतें न जीतें कुर्सी फिर भी मिल जाती है उन्हें ... सटीक लिखा है ...

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    1. सत्य कथन दिगंबर जी....और उन्हें कुर्सी हम व हम जैसे लोग ही देते हैं...

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  9. नेताजी फ़िक़्र न करो...
    वाह !

    नेताजी तो आपकी बात पर पूरा अमल कर रहे हैं आदरणीय कालीपद प्रसाद जी
    :)

    मंगलकामनाओं सहित...
    ♥ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं ! ♥
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  10. क्या बात है भाई जी-
    बढ़िया-

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  11. बहुत ही सही कटाक्ष !
    बहुत सार्थक लेखन ..

    दिल से बधाई स्वीकार करे.

    विजय कुमार
    मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com

    मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com

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  12. आज के नेताओं की मानसिकता एवँ आम जनता के सही हालातों का वास्तविक चित्रण उकेर दिया है रचना में आपने ! बहुत ही बढ़िया रचना ! रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनायें !

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  13. नेता जी को तो बस कुर्सी की फ़िक्र होती है, बहुत ही सुंदर सटीक लिखा है आपने, शुभकामनाये

    यहाँ भी पधारे

    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/08/blog-post_6131.html

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  14. achhe bhav hain Kaliprasad ji ...... chinta aam aadmi ki aam admi hi karta hai bas ...... netaon ko kahan fikr hai........

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  15. सन्नाट अभिव्यक्ति..

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  16. बेहद सुन्दर रचना कालीपद प्रसाद जी, आपके इस ब्लॉग पर शायद पहली बार मेरा आगमन हो रहा है। मुझे आपके ब्लॉग पर काफी पहले ही आ जाना चाहिए था, यह मेरी नादानी ही समझिये। बहरहाल देर से ही सही अंततः आ ही गया। शानदार ब्लॉग है आपका एंव रचनाएँ भी बेहद सुन्दर है। आभार सहित।

    ------मनोज जैसवाल------

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  17. मनोज जैसवाल जी, ब्लॉग में आने के लिए और टिप्पणी देने के लिए आभार !.आगे भी आपके आगमन की प्रतीक्षा रहेगी

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  18. नेताजी ने कब कहा कि गेहूं को सडने दो....क्या अफसर, कर्मिकजन....जो आम जनता का भाग हैं दोषी नहीं हैं...

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  19. sarthak, prabhavshali rachna Kalipad ji.

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