बचपन में मैंने
तुम्हारी ऊँगली पकड़कर
चलना सिखाया था ,
विद्यालय के सीढ़ियों पर
हाथ पकड़कर चढ़ना सिखाया था,
और तुम चढ़ती गई बेझिझक,
ऊपर और ऊपर
निर्विघ्न ,निश्चिन्त ,
होकर निडर
क्योंकि
तुम्हारी सीढ़ी थी "मैं"।
मुझपर तुम्हे पूरा भरोषा था
एक आस्था थी ,अटूट विश्वास था ,
तुम ऊपर और ऊपर चढ़ गई.।
फिर क्या हुआ ?
क्या खता हो गई ?
वो विश्वास ,वो भरोषा क्यों टुटा ?
कि तुमने उस सीढ़ी को
एक लात मरकर गिरा दिया ?
सोचकर यही कि
सीढ़ी का काम ख़त्म हो गया ?
अचंभित हूँ,निर्वाक हूँ.।
कहने को बहुत कुछ है
पर दिल नहीं चाहता कुछ कहूँ
क्योंकि अपने लगाये पौधे को
फलते फूलते देखना चाहता हूँ ।
पर बिना मांगे
एक नसीहत देता हूँ
इसे याद रखना।
सीढ़ी की जरुरत तुम्हे फिर होगी
यदि तम्हे है और ऊपर चढना
या फिर जब चाहोगे नीचे उतरना।
पर जब भी किसी सीढ़ी का सहारा लो
उसके लिए कृतज्ञता के दो शब्द कहना
उसे कभी लात मारकर न गिराना।
कालीपद "प्रसाद "
© सर्वाधिकार सुरक्षित
सच है !
ReplyDeleteएक अनूठा और सत्य पूर्ण रचना
ReplyDeleteआज के प्रेम प्रसंग में कुछ ऐसा ही हो रहा है।
बहुत बहुत ख़ूब सर
सार्थक एवँ प्रेरक प्रस्तुति ! जीवन में ऊपर चढ़ने के लिये सीढ़ियों की ज़रूरत हमेशा पड़ेगी ! उनके महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता !
ReplyDeleteसुन्दर एवं सार्थक लेखन :)
ReplyDeleteउम्दा अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहकीक्त यही है .....
सार्थक रचना..
ReplyDeleteजिस सीढ़ी के सहारे जीवन भर ऊँचाइयों को पाते गए उसके प्रति कृतज्ञता तो होनी ही चाहिए...
:-)
bahut hee sarthak bichar ..nootan chintan .saadar badhaaayee
ReplyDeletesacchi bat kah di aapne anmol seekh ke sath ....
ReplyDeleteसच कहा आपने काली पद जी बहुत बधाई ।
ReplyDeleteसत्य कहा आपने.
ReplyDeleteरामराम.
सटीक रचना !!
ReplyDeleteसभी बुज़ुर्गों का सम्मान करें, सुन्दर रचना
ReplyDeleteआपकी यह रचना आज रविवार (01-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteअरुण जी आपका बहुत बहुत आभार !
Deletesahi nasihat....par aaj ki sacchaiyee yahi hai.....sundar rachna
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - सोमवार -02/09/2013 को
ReplyDeleteमैंने तो अपनी भाषा को प्यार किया है - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः11 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
दर्शन जी आपका बहुत बहुत आभार !
Deleteबहुत बढ़िया रचना....
ReplyDeleteमाफ़ कीजिये सर,शीर्षक में नसीयत की जगह नसीहत नहीं होना चाहिए क्या??
सादर
अनु
हाँ अनुजी, "नसीहत" ही है ,आभार आपका
Deleteउसके लिए कृतज्ञाता के दो शब्द कहना ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
सही सीख...
ReplyDeletevery nice poem
ReplyDeleteasha
बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteचढ़ना,और सीढ़ी,को ठीक ले,
RECENT POST : फूल बिछा न सको
धीरेन्द्र जी आपका आभार
Deleteसीढ़ी की जरुरत तुम्हे फिर होगी
ReplyDeleteयदि तम्हे है और ऊपर चढना
या फिर जब चाहोगे नीचे उतरना।
पर जब भी किसी सीढ़ी का सहारा लो
उसके लिए कृतज्ञता के दो शब्द कहना
उसे कभी लात मारकर न गिराना।
YE KAUN SOCHATA HAI AAGE BADHAKAR LOG BHUL JATE HAIN
very nice composition with a strong message...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteकोलाज जिन्दगी के : अगर हम जिन्दगी को गौर से देखें तो यह एक कोलाज की तरह ही है. अच्छे -बुरे लोगों का साथ ,खुशनुमा और दुखभरे समय के रंग,और भी बहुत कुछ जो सब एक साथ ही चलता रहता है.
http://dehatrkj.blogspot.in/2013/09/blog-post.html
बेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!शुभकामनायें.
ReplyDeletehttp://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
बढ़िया प्रस्तुति -
शुभकामनायें-आदरणीय-
उम्र भर जरूरत रहती है इसकी तो ...
ReplyDeleteइसका आदर करना चाहिए ...
bahut achchi kavita ...
ReplyDeleteजब भी किसी सीढ़ी का सहारा लो
ReplyDeleteउसके लिए कृतज्ञता के दो शब्द कहना
उसे कभी लात मारकर न गिराना.........बहुत सार्थक बात कह दी आपने इस कविता के माध्यम से।
bahut hi sunder rachna apne sabdo kw madhyam se bahut hi sarthak baat kahi
ReplyDeleteअनूठी सोच ...बहुत खूब
ReplyDeleteसही कहा आपने ..
ReplyDeleteजीवन को सही और सुचारू जीने की सार्थक सीख
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति----
साधुवाद
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ReplyDeleteआपकी यह रचना बहुत ही सुंदर है…
ReplyDeleteमैं स्वास्थ्य से संबंधित छेत्र में कार्य करता हूं यदि आप देखना चाहे तो कृपया यहां पर जायें
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