घोंसला उड़ा,शावक गिरा,बिखरा चिड़िया का परिवार l
तिनका तिनका जोड़कर चिड़िया,बनायी थी आशियाना
हर संकट से शावक को अपना चाहती थी बचाना l
किन्तु निष्ठुर नियति का यह विनाशकारी अभियान
पतित पेड़ के नीचे छुपकर, बचायी अपनी जान
l
मौसम का क्रोध जब शमित हुआ,पवन भी हुआ शांत
आतुरता से खोजने लगी,कहाँ है उसकी संतान l
भीगकर शावक पड़े थे अचेत,उसी पेड़ के नीचे
चोंच में उठाकर रखा गोद में अपनी छाती के नीचे l
माँ के तन की उष्मा पाकर, फिर सचेत हुए बच्चे
माँ के प्यार में सुरक्षित है दुनिया के हर बच्चे l
कालीपद "प्रसाद'
सर्वाधिकार सुरक्षित
बहुत बढ़िया रचना सर ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबहुत अच्छी और सच्ची रचना ...
ReplyDeleteअदभुत मातृ प्रेम
ReplyDeleteपधारे
www.knightofroyalsociety.blogspot.in में
भावपूर्ण ... सच है माँ की छाया के नीचे सब सुरक्षित हो जाते हैं ...
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर बिम्ब भाव रचना भाव संसार। माँ के आँचल की आंच संजीवनी है।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (15-12-2014) को "कोहरे की खुशबू में उसकी भी खुशबू" (चर्चा-1828) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका आभार डॉ रूपचन्द्र शास्री जी l
Deleteबहुत सुन्दर ...सादर बधाई
ReplyDelete.
ReplyDeleteसुंदर कविता !