विस्मित हूँ देख-देखकर प्रकृति की नज़ारे
चमकता सूर्य ,चन्द्र और भोर के उज्ज्वल तारे |
दिनभर चलकर दिनकर,श्रान्त पहुँचता अस्ताचल,
अलसाकर सो जाता , ओड़कर निशा का आँचल |
चाँद तब आ जाता नभ में ,फैलाने धवल चाँदनी,
तमस भाग जाता तब , हँसने लगती है रजनी |
निस्तब्ध निशा में चुमके से, आ-जाती तारों की बरात
झिलमिलाते,टिमटिमाते, आँखों-आँखों में करते हैं बात |
तुनक मिज़ाज़ी मौसम है, कहते हैं- मौसम बड़ी बे-वफ़ा,
उनकी शामत आ-जाती है ,जिस पर हो जाता है खफ़ा |
सूरज हो या चाँद हो, या हो टिमटिमाते सितारे,
अँधेरी कोठरी में बन्द कर देता है, लगा देता है ताले |
रिमझिम कभी बरसता है ,कभी बरसता है गर्जन से
बरसकर थम जाता है ,शांत हो जाता है आहिस्ते से |
कितने अजीब ,कितने मोहक ,लगते है सारे प्यारे,
विस्मित हूँ, देख-देखकर प्रकृति की नज़ारे |
सिंदूरी सूरज के स्वागत में व्याकुल हैं ये फूल,
रंग-बिरंगी वर्दी पहनकर, मानो खड़े हैं सब फूल|
नीला आसमान प्रतिबिंबित, जहाँ है बरफ की कतारें,
विस्मित हूँ देख देखकर प्रकृति की नज़ारे |
फागुन में होली खेलते हैं लोग ,रंगीन होता है हर चेहरा,
प्रकृति खेलती होली , रंगीन होता है पर्वत का चेहरा |
प्रकृति मनाती होली दिवाली, मिलकर सब चाँद सितारे,
विस्मित हूँ देख-देखकर प्रकृति की नज़ारे |
कालीपद "प्रसाद"
(c)
सभी चित्र गूगल से साभार
आपका आभार रविकर जी !
ReplyDeleteप्राकृति ही जननी है सुन्दरता की जो अपने मोहक रूप में आती रहती है ...
ReplyDeleteफोंट बढा दें तो पढने में आसानी हो जाये :)
ReplyDeleteसुंदर ।
ReplyDeleteबहुत खूब सशक्त बोलता सा चित्र काव्य बना दिया आपने इस रचना को।
बहुत सुन्दर ...लाजवाब प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति...सच में अद्भुत है प्रभु की यह कृति, प्रकृति
ReplyDeleteमनोरम और सुन्दर कविता....बहुत उत्तम।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रकृतिमय रचना....
ReplyDeletebahut hi manoram chitr va prastuti .. ati sunder
ReplyDeleteसुन्दर प्रकृति के रंगों में रंगी रचना
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