Sunday 2 November 2014

तुझे मना लूँ प्यार से !**





चाहता हूँ ,तुझे मना लूँ प्यार से
लेकिन डर लगता है तेरी गुस्से से !
घर मेरा तारिक के आगोश में है
रोशन हो जायगा तेरी बर्के-हुस्न से !
इन्तजार रहेगा तेरा क़यामत तक
नहीं डर कोई गमे–फ़िराक से !
मालुम है कुल्फ़ते बे-शुमार हैं रस्ते में
इश्क–ए–आतिश काटेगा वक्त इज़्तिराब से !
हुस्न तेरी बना दिया है मुझे बे-जुबान
बताऊंगा सब कुछ ,तश्ना–ए–तकरीर से |

शब्दार्थ : तारिक=अन्धकार ,अँधेरा ; बर्के हुस्न=बिजली जैसी चमकीला सौन्दौर्य : गमे –फ़िराक=विरह का दुःख : इश्क –ए –आतिश =प्यार का आग : इज़्तिराब से=व्याकुलता से : तश्ना –ए – तकरीर=प्यासे होंठो से 

कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित

13 comments:

  1. आपका आभार डॉ रूपचंद्र शास्त्री जी ! श्रीमती जी अस्वस्थ है इसीलिए ब्लॉग पर नियमित रूप से आ नहीं पा रहा हूँ |

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  2. शब्दों को समझने की कोशिश की है ,दिये हुए अर्थ का सहारा ले कर .

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  3. बहुत खूब ... उनके गुस्से से तो हर कोई डरता है ...

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  4. हुस्न तेरी बना दिया है मुझे बे-जुबान
    बताऊंगा सब कुछ ,तश्ना–ए–तकरीर से
    बेहतरीन
    जय हिन्द

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  5. Behad lajawaab prastuti ... Aabhar !!

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति....

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  8. बहुत सुन्दर...

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  9. बहुत बढिया लिखा है। शब्दों के अर्थ से बहुत सहारा मिला है।

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  10. बहुत सुंदर रचना।

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  11. प्रगाढ़ अनुभूति सूफियाना इश्क की .सुन्दर मनोहर .

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  12. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! शास्त्रीय उर्दू का स्वागत !

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  13. bahot khub rachna......!!!

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