Tuesday, 16 May 2017

ग़ज़ल

मीना–ए-मय में’ मस्त सहारा शराब है
गुज़र गया है’ वक्त, नहीं अब शबाब है |

संसार में नहीं मिला दामन किसी का’ साफ
प्रत्येक चेहरा ढका, काला नकाब है |

इलज़ाम जो लगाया’ है’ उसका सबूत क्या
हिस्सा नही मिला यही केवल इताब है |

वह्काना’ बारदात घटित होती जीस्त में
यह जिंदगी सदैव दिखाती सराब है |

उजला धवल निशा में’ दिखाती अपूर्व रूप
यह वस्त्र पहनी’ है जो’ धरा माहताब है |

दुल्हन बनी रिझा रही’ आशिक है’ बावला
ये खूशबू-ए-रंग लगे ज्यों गुलाब है |

दुनिया में खौफ है विघटन का सही वजह
कोई डरा तो’ कोई’ निडर बेहिसाब है | | 

कालीपद'प्रसाद'    

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 17 मई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह ! ,बेजोड़ पंक्तियाँ ,सुन्दर अभिव्यक्ति ,आभार। "एकलव्य"

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  3. bhut acche keep posting keep visiting on www.kahanikikitab.com

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