मीना–ए-मय में’ मस्त
सहारा शराब है
गुज़र गया है’ वक्त,
नहीं अब शबाब है |
संसार में नहीं मिला
दामन किसी का’ साफ
प्रत्येक चेहरा ढका,
काला नकाब है |
इलज़ाम जो लगाया’ है’
उसका सबूत क्या
हिस्सा नही मिला यही
केवल इताब है |
वह्काना’ बारदात
घटित होती जीस्त में
यह जिंदगी सदैव
दिखाती सराब है |
उजला धवल निशा में’
दिखाती अपूर्व रूप
यह वस्त्र पहनी’ है
जो’ धरा माहताब है |
दुल्हन बनी रिझा
रही’ आशिक है’ बावला
ये खूशबू-ए-रंग लगे
ज्यों गुलाब है |
दुनिया में खौफ है
विघटन का सही वजह
कोई डरा तो’ कोई’
निडर बेहिसाब है | |
कालीपद'प्रसाद'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 17 मई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह ! ,बेजोड़ पंक्तियाँ ,सुन्दर अभिव्यक्ति ,आभार। "एकलव्य"
ReplyDeletebhut acche keep posting keep visiting on www.kahanikikitab.com
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