मंत्री’ पद के लिए
दिल मचलने लगे
रहनुमा स्वयं पार्टी बदलने लगे |
सिर्फ सिद्धांत का अर्थ कुछ भी नहीं
स्वार्थ में अर्थ भी तो बदलने लगे |
घूस देने सभी पार्टियां है चतुर
रहनुमा के कदम भी फिसलने लगे |
लाख पंद्रह नहीं आ सका तो अभी
अपने वादे से नेता पलटने लगे |
तेज आदित्य, माहौल भी गर्म है
गर्म वैशाख में तन झुलसने लगे |
दल बदल अब तलक चल रहा है अबाध
मामला इंतखाबी उलझने लगे|
ढूंढते, कौन पैसा
अधिक दे रहा
दल बदल करने’ वाले भटकने लगे |
कालीपद 'प्रसाद'
बहुत ही बेहतरीन गज़ल
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया रीना मौर्य जी
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 3 अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
साझा करने के लिए सादर आभार पम्मी सिंह 'तृप्ति " जी
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 02/04/2019 की बुलेटिन, " २ अप्रैल को राकेश शर्मा ने छुआ था अंतरिक्ष - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसादर आभार शिवम् मिश्रा जी
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ReplyDeleteसिर्फ सिद्धांत का अर्थ कुछ भी नहीं
स्वार्थ में अर्थ भी तो बदलने लगे
बहुत खूब
सादर आभार ज्योति सिंह जी
Deleteबेहतरीन ग़ज़ल। सादर बधाई।
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया वीरेंदर सिंह जी
Deleteबहुत सुंदर ग़ज़ल
ReplyDeleteशुक्रिया अनुराधा चौहान जी
Deleteबहुत ही शानदार गजल सार्थक सुंदर ।
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया मन की वीणा जी
Deleteबहुत सुन्दर समसामयिक गजल...
ReplyDeleteवाह!!!
शुक्रिया सुधा देवरानी जी
Deleteachhi gazal
ReplyDeleteशुक्रिया आनंद विक्रम त्रिपाठी जी
Deleteसादर शुक्रिया अनु शुक्ल जी |
ReplyDeleteसादर आभार अनुराधा चौहान जी
ReplyDeleteशुक्रिया आनंद विक्रम त्रिपाठी जी
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