२२१ २१२२ २२१ २१२२
कोई अगर कहे इक कटु सच, बुरा न
माने
अब आपके प्रशासन सब हो गए
पुराने |
संतो अभी कथा वाचन बंद कर दिए
हैं
विश्वास अब नहीं, झूठे हैं सभी
फ़साने |
परदेश में सभी लालायित, ब्रिटेन,
डच, फ्रेंच
वो पोर्तगीज आये डेरा यहीं
जमाने
झगडा अभी नहीं निपटा दैर–ओ-हरम
का
जो आग दैर की, कोशिश कर अभी
बुझाने |
तस्वीर तेरी’ भी बिलकुल साफ़ तो
नहीं है
नादान ! इसलिए कहता हूँ न मार
ताने |
हर बार मात खाया है जंग में
सरापा
अब तू कभी न कोशिश कर शक्ति
आजमाने |
ये वक्त गत्लियाँ सारे है
सुधारने का
तुझको शर्म नहीं क्या इस वक्त
को गँवाने |
कालीपद 'प्रसाद'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (05-12-2019) को "पत्थर रहा तराश" (चर्चा अंक-3541) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार डॉ रूपचंद्र शास्त्री मयंक जी , इस् पोस्ट को साझा करने के लिए |धन्यवाद
Deleteचिंतनीय !
ReplyDeleteशुक्रिया आ गगन शर्मा जी
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