दोहे !
भारत में हर मास में, होता इक त्यौहार
केवल सावन मास है, पर्वों से भरमार |1|
रस्सी बांधे साख में, झूला झूले नार
रिमझिम रिमझिम वृष्टि में, है आनन्द अपार |२|
जितने हैं गहने सभी, पहन कर अलंकार
साथ हरी सब चूड़ियाँ, बहू करे श्रृंगार |३|
काजल बिन्दी साड़ियाँ, माथे का सिन्दूर
और देश में ये नहीं, सब हैं इन से दूर |४|
कभी तेज धीरे कभी, कभी मूसलाधार
सावन में लगती झड़ी, घर द्वार अन्धकार |५|
दीखता रवि कभी कभी, जब है सावन मास
बहुत नहीं है रौशनी, मिलता नहीं उजास |६|
© कालीपद .’प्रसाद’
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "१४ अगस्त और खुफिया कांग्रेस रेडियो “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबढ़िया ।
ReplyDelete