Saturday 31 August 2013

नसीहत



बचपन में मैंने
तुम्हारी ऊँगली पकड़कर
चलना सिखाया था ,
विद्यालय के सीढ़ियों  पर 
हाथ पकड़कर चढ़ना सिखाया था,
और तुम चढ़ती गई बेझिझक,
ऊपर और ऊपर
निर्विघ्न ,निश्चिन्त ,
होकर निडर
क्योंकि 
तुम्हारी सीढ़ी थी "मैं"। 
मुझपर तुम्हे पूरा भरोषा था 
एक आस्था थी ,अटूट विश्वास था ,
तुम ऊपर और ऊपर चढ़ गई.। 
फिर क्या हुआ ?
क्या खता हो गई ?
वो विश्वास ,वो भरोषा क्यों टुटा ?
कि तुमने उस सीढ़ी  को 
एक लात मरकर गिरा  दिया ?
सोचकर यही कि 
सीढ़ी का काम ख़त्म हो गया ?

अचंभित हूँ,निर्वाक हूँ.। 
कहने को बहुत कुछ है
पर दिल नहीं चाहता कुछ कहूँ 
क्योंकि अपने लगाये पौधे को 
 फलते फूलते  देखना चाहता हूँ । 

पर बिना मांगे 
एक नसीहत देता हूँ 
इसे याद रखना। 
सीढ़ी की जरुरत तुम्हे फिर होगी
यदि तम्हे है और ऊपर चढना 
या फिर जब चाहोगे नीचे उतरना।
पर जब भी किसी सीढ़ी का सहारा लो 
उसके लिए कृतज्ञता के दो शब्द कहना 
उसे कभी लात मारकर न गिराना।


कालीपद "प्रसाद "


© सर्वाधिकार सुरक्षित




40 comments:

  1. एक अनूठा और सत्य पूर्ण रचना
    आज के प्रेम प्रसंग में कुछ ऐसा ही हो रहा है।
    बहुत बहुत ख़ूब सर

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  2. सार्थक एवँ प्रेरक प्रस्तुति ! जीवन में ऊपर चढ़ने के लिये सीढ़ियों की ज़रूरत हमेशा पड़ेगी ! उनके महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता !

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  3. सुन्दर एवं सार्थक लेखन :)

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  4. उम्दा अभिव्यक्ति
    हकीक्त यही है .....

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  5. सार्थक रचना..
    जिस सीढ़ी के सहारे जीवन भर ऊँचाइयों को पाते गए उसके प्रति कृतज्ञता तो होनी ही चाहिए...
    :-)

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  6. bahut hee sarthak bichar ..nootan chintan .saadar badhaaayee

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  7. sacchi bat kah di aapne anmol seekh ke sath ....

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  8. सच कहा आपने काली पद जी बहुत बधाई ।

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  9. सत्य कहा आपने.

    रामराम.

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  10. सभी बुज़ुर्गों का सम्मान करें, सुन्दर रचना

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  11. आपकी यह रचना आज रविवार (01-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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    1. अरुण जी आपका बहुत बहुत आभार !

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  12. sahi nasihat....par aaj ki sacchaiyee yahi hai.....sundar rachna

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  13. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - सोमवार -02/09/2013 को
    मैंने तो अपनी भाषा को प्यार किया है - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः11 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra




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    1. दर्शन जी आपका बहुत बहुत आभार !

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  14. बहुत बढ़िया रचना....
    माफ़ कीजिये सर,शीर्षक में नसीयत की जगह नसीहत नहीं होना चाहिए क्या??

    सादर
    अनु

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    1. हाँ अनुजी, "नसीहत" ही है ,आभार आपका

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  15. उसके लिए कृतज्ञाता के दो शब्द कहना ।

    बहुत सुंदर

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  16. बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,
    चढ़ना,और सीढ़ी,को ठीक ले,

    RECENT POST : फूल बिछा न सको

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  17. सीढ़ी की जरुरत तुम्हे फिर होगी
    यदि तम्हे है और ऊपर चढना
    या फिर जब चाहोगे नीचे उतरना।
    पर जब भी किसी सीढ़ी का सहारा लो
    उसके लिए कृतज्ञता के दो शब्द कहना
    उसे कभी लात मारकर न गिराना।
    YE KAUN SOCHATA HAI AAGE BADHAKAR LOG BHUL JATE HAIN

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  18. very nice composition with a strong message...

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  19. बहुत सुन्दर.
    कोलाज जिन्दगी के : अगर हम जिन्दगी को गौर से देखें तो यह एक कोलाज की तरह ही है. अच्छे -बुरे लोगों का साथ ,खुशनुमा और दुखभरे समय के रंग,और भी बहुत कुछ जो सब एक साथ ही चलता रहता है.
    http://dehatrkj.blogspot.in/2013/09/blog-post.html

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  20. बेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!शुभकामनायें.
    http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

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  21. बढ़िया प्रस्तुति -
    शुभकामनायें-आदरणीय-

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  22. उम्र भर जरूरत रहती है इसकी तो ...
    इसका आदर करना चाहिए ...

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  23. जब भी किसी सीढ़ी का सहारा लो
    उसके लिए कृतज्ञता के दो शब्द कहना
    उसे कभी लात मारकर न गिराना.........बहुत सार्थक बात कह दी आपने इस कविता के माध्‍यम से।

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  24. bahut hi sunder rachna apne sabdo kw madhyam se bahut hi sarthak baat kahi

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  25. अनूठी सोच ...बहुत खूब

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  26. सही कहा आपने ..

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  27. जीवन को सही और सुचारू जीने की सार्थक सीख
    उत्कृष्ट प्रस्तुति----
    साधुवाद

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  31. आपकी यह रचना बहुत ही सुंदर है…
    मैं स्वास्थ्य से संबंधित छेत्र में कार्य करता हूं यदि आप देखना चाहे तो कृपया यहां पर जायें
    वेबसाइट

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