न्यायपालिका |
तीन स्तम्भ हैं भारत महान लोकतंत्र का
संसद ,न्यायपालिका और कार्यपालिका |
न्यायपालिका ,कार्यपालिका को बना दिया बेअसर
संसद स्वयंभू- स्व-घोषित, राज -संसद बनकर |
"सांसद विधाता हैं "हुआ हुक्म ज़ारी संसद में
"सांसद आजाद हैं " बंधे नहीं कानूनी ज़ंजीर में|
न्यायपालिका का आदेश मान्य है जनता के लिए
सांसद तो विधाता है,कोर्ट का फैसला नहीं उनके लिए |
कहने के लिये हैं "कानून के ऊपर कोई नहीं "
हकीकत में,भारत में सांसद से बड़ा कोई नहीं |
मंत्री अगर अपनी मनमानी न कर पाए
किस बात का मंत्री वह ,खुद समझ न पाए |
घपला करना, कमीशन खाना, यही तो धर्म है
अगले चुनाव का खर्च जुटाना,यही तो एक काम है |
इनको मंजूर नहीं,इनके घपले पर ऊँगली उठाय कोई
जनता हो ,मीडिया हो ,न्यायालय हो या हो और कोई |
घमंड है उनको ,कानून बनाकर ,बना सकते है सबको निकम्मा
आदेश है उनका "प्रसाद "सर झुककर मानो ,कभी न सर उठाना |
शब्दार्थ : राज -संसद =राजसभा जहाँ राजा खुद न्याय करता है |न्यायाधीश को निष्क्रिय बना देता है |
रचनाकार
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
शुभप्रभात
ReplyDeleteलेखनी कितनी भी धारदार हो
इन गूंगे बहरे पर असर नहीं हो रही
सादर
haqueekat....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार को (14-11-2013) ऐसा होता तो ऐसा होता ( चर्चा - 1429 ) "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चाचा नेहरू के जन्मदिवस बालदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका आभार डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी !
Deleteआज के हकीकत को वयां करती सुंदर रचना प्रस्तुति !!
ReplyDeleteचौथा स्तंभ भी है एक
ReplyDeleteअलग कहीं खड़ा हुआ !
सुंदर !
हकीकत से रूबरू कराती रचना.
ReplyDeleteनई पोस्ट : पुनर्जन्म की अवधारणा : कितनी सही
आदरणीय सर , मैं भी श्री विभा जी की बात से सहमत हूँ , असर डालता बढ़िया लेख , धन्यवाद
ReplyDeleteसूत्र आपके लिए अगर समय मिले तो --: श्री राम तेरे कितने रूप , लेकिन ?
* जै श्री हरि: *
बहुत सटीक.
ReplyDeleteरामराम.
देश की असलियत से रूबरू कराती रचना ...
ReplyDeleteसटीक ...
समसामयिक रचना |
ReplyDeleteसटीक भावाभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteसत्य ही सत्य
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति ..सादर
ReplyDeleteसटीक समसामयिक रचना |
ReplyDeleteबहुत ही सटीक बाते कही है रचना में,
ReplyDeleteबहुत खूब !
वाह! क्या खूब..
ReplyDeleteफिर भी सांसदों को जनता के सामने झुकना होता है अब जनता की बारी है कि वह अपनी शक्ति को कम न आंके...
ReplyDeleteसामयिक प्रस्तुति
ReplyDeleteWah !!!! bahut khub.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteसटीक व सामयिक रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteसांसद छुट्टा सांड है जनता निरीह गाय ,
ReplyDeleteसांसद मूषक राज है लोकतंत्र को खाय ,
निसिदिन कुतर कुतर के खाय ,
भैया कुतर कुतर के खाय ,
बिन खाय रहा न जाय ,
खुट्टल दांत होई जाय।
अच्छी साहस पूर्ण प्रस्तुति !
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