Monday 20 October 2014

रहने दो मुझे समाधि में !













खोजता  हूँ तुझे यहाँ वहां

भटका हूँ तेरे लिए न जाने कहाँ कहाँ !

थक कर बैठ जाता हूँ आँख मूंदकर

बन्ध आँखों में आता है तु प्रकाशपुंज बनकर !

सहस्र कोटि सूर्य सम वह तेज

कर देता है मेरी आखों को निस्तेज !

मेरी आँखों की रश्मि खो जाती है रश्मिपुंज में

भूलकर अस्तित्व ,मैं खो जाता हूँ उस ज्योतिपुंज में !

उस प्रकाश पुंज  में तुझे ढूंढ़ता हूँ

अहसास होता है ,देख नहीं पाता,मैं सूरदास हूँ |

निर्बाध विचरण करता हूँ प्रकाशपुंज में यहाँ-वहां

जैसे महा सागर में विचरती हैं मछलियाँ !

मुग्ध हूँ ,तेरे खुशबु से ,सब खुशबु से जुदा है

संविलीन हूँ आनंद में ,जिसके लिए जग पागल है !

मुझसे ना छीनो इस आनंद को

महसूस करने दो मुझे इस परमानंद को !

रहने दो मुझे इस  महा समाधि में

तुम तो नहीं मिलते हो किसी और राह में ! 

कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित

10 comments:

  1. बहुत सुन्दर ...प्रभू मिलते भी तो इसी राह से हैं !

    ReplyDelete
  2. सुन्दर कविता।...मन लुभाने मे समर्थ!!!

    ReplyDelete
  3. आपका आभार रविकर जी !

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - मंगलवार- 21/10/2014 को
    हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 38
    पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

    ReplyDelete
  5. आपका आभार दर्शन ज़न्गरा जी !

    ReplyDelete
  6. वाह... बेहतरीन

    ReplyDelete
  7. Manbhawan prastuti ...umdaa!!

    ReplyDelete
  8. बेहतरीन , सर धन्यवाद !

    आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 23 . 10 . 2014 दिन गुरुवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
    Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

    ReplyDelete