Friday, 26 April 2019

ग़ज़ल

इश्क में वह तुम्हारा दिवाना नहीं
डूबती नाव में बैठ रोना नहीं |
जो कभी कुछ कहें और फिर कुछ कहे
दो मुँहा आदमी दोस्त अच्छा नहीं |
एक पल तुम उसे आजमा देख लो
बात कर देख आशिक तुम्हारा नहीं |
देखता सर्वदा प्रेम की नज्र से
प्रेम का कोई’ भी तो इशारा नहीं |
जिंदगी मैं तुझे सौंपना चाहती
तेरे’ बिन मेरे’ कोई सहारा नहीं |
बेवफाई न मैंने कभी की सनम
मान लो बात मेरी बहाना नहीं |
खूब ‘काली’ तड़पता रहा अब तलक
भग्न संबंध को अब निभाना नहीं |
कालीपद 'प्रसाद'

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