Saturday, 6 April 2019

गीतिका

लावणी छंद
इंसान को बनाकर थकान से भगवान सो गया था
जगकर देखा मनुष्य का सब, रूप, रंग बदल गया था |

कर्तव्य का अर्थ स्वयं स्वार्थ में, मर्ज़ी से बदल दिया
एक पिता के थे सब भाई, अलग धर्म में बंट गया था |

कोई हिन्दू, मुस्लिम कोई, ईशाई जैन पारसी
अनेक धर्म अनेक मतों में, इंसान बिखरा गया था |

एक पिता को बाँट लिया था, ईश्वर खुदा के नाम से
राम रहीम की लड़ाई में, स्नेह प्यार बंट गया था |

धर्म को बना ढाल पुजारी, रब नाम से ठगने लगे
घोखा खाकर बार बार नर, धर्म खिलाफ हो गया था |

मैं अल्ला हूँ, या ईश्वर हूँ, भ्रान्ति में थे सृष्टि कर्ता
सोच रहा था मानव गढ़ कर, उनसे भूल हो गया था |

कालीपद 'प्रसाद'

6 comments:

  1. बढ़िया पोस्ट

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  2. शुक्रिया राकेश गुप्ता जी

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  3. मैं अल्ला हूँ, या ईश्वर हूँ, भ्रान्ति में थे सृष्टि कर्ता
    सोच रहा था मानव गढ़ कर, उनसे भूल हो गया था |
    बहुत सुंदर।

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  4. सादर आभार आ ज्योति देहीवाल जी

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  5. aacha hai sir....
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