लावणी छंद
इंसान को बनाकर थकान से भगवान सो गया था
जगकर देखा मनुष्य का सब, रूप, रंग बदल गया था |
जगकर देखा मनुष्य का सब, रूप, रंग बदल गया था |
कर्तव्य का अर्थ स्वयं स्वार्थ में, मर्ज़ी से बदल दिया
एक पिता के थे सब भाई, अलग धर्म में बंट गया था |
एक पिता के थे सब भाई, अलग धर्म में बंट गया था |
कोई हिन्दू, मुस्लिम कोई, ईशाई जैन पारसी
अनेक धर्म अनेक मतों में, इंसान बिखरा गया था |
अनेक धर्म अनेक मतों में, इंसान बिखरा गया था |
एक पिता को बाँट लिया था, ईश्वर खुदा के नाम से
राम रहीम की लड़ाई में, स्नेह प्यार बंट गया था |
राम रहीम की लड़ाई में, स्नेह प्यार बंट गया था |
धर्म को बना ढाल पुजारी, रब नाम से ठगने लगे
घोखा खाकर बार बार नर, धर्म खिलाफ हो गया था |
घोखा खाकर बार बार नर, धर्म खिलाफ हो गया था |
मैं अल्ला हूँ, या ईश्वर हूँ, भ्रान्ति में थे सृष्टि कर्ता
सोच रहा था मानव गढ़ कर, उनसे भूल हो गया था |
सोच रहा था मानव गढ़ कर, उनसे भूल हो गया था |
कालीपद 'प्रसाद'
बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteशुक्रिया राकेश गुप्ता जी
ReplyDeleteमैं अल्ला हूँ, या ईश्वर हूँ, भ्रान्ति में थे सृष्टि कर्ता
ReplyDeleteसोच रहा था मानव गढ़ कर, उनसे भूल हो गया था |
बहुत सुंदर।
सादर आभार आ ज्योति देहीवाल जी
ReplyDeletenice sir...
ReplyDeletewww.thegurugyaan.com
aacha hai sir....
ReplyDeletewww.kbmotivation.blogspot.com