झूठ बोले धर्म आसन से जमाना क्या करें ?
अब खुदा भी हो गए हैं कैद आशा क्या करें ?
हो गए वादे सभी अब खत्म खाली झोली’ है
वोट कैसे मांगे’ जनता से बहाना क्या करें ?
गोत्र समुदाय और मजहब हो गए प्रतिबंध सब
अब समझ में कुछ नहीं, मल्हार गाया क्या करें ?
नोट बंदी से खजाना खोखला अब हो गया
जेब में पैसे नहीं इक,अब लुटाया क्या करें ?
वोट में सब पोल खुलते है, हमारा भी खुला
झूठ की गटरी सभी भाषण, छिपाया क्या करें?
हारने के बाद पछतावा ही’ रह जाता सनम
यह बड़ी दुख की घड़ी अब गुनगुनाया क्या करें ?
तोड़कर दिल बेकरारी दी मुझे क्यों ए सनम
तू बता’ काली’ कि बेचारा दिवाना क्या करें |
कालीपद ''प्रसाद'
ख़ूबसूरत रचना....
ReplyDeleteshukriyaa sanjay bhaskar ji
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