Monday, 11 November 2019

ग़ज़ल


१२१२  ११२२  १२१२  २२ (१)
उन्हें अतीव ख़ुशी क्यों क़ज़ा के’ आने की
खबर मिली नहीं’ उस बेवफा के आने की |

मुसीबतों से’ अभी हो गई मे’री यारी
है’ इंतज़ार भयानक बला के’ आने की |

बहुत कसम लिए’ वो इन्तखाब के पहले
चनाव में गए सौगंध खा के’, आने की |

गली गली के’ हुए हैं मलिन हवा पानी
उमीद कैसे’ करे पाछुआ के‘ आने की |

रहीम राम वही है, वो’ बुद्ध गुरुनानक
नवीन रूप में प्रतीक्षित खुदा के’ आने की |

समाज को अभी’ अब इंतज़ार है कुछ और
रहीम राम के’ वो काफिला के’ आने की |

रहीम राम मिले जब, गले मिले ‘काली’  
रहीम राम कहे दिल मिला के’ आने की |

कालीपद 'प्रसाद'

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-11-2019) को    "आज नहाओ मित्र"   (चर्चा अंक- 3517)  पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।  
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. शुक्रिया आदरणीय डॉरूपचंद्र शास्त्री जी

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  3. शुक्रिया आ रूपचंद्र शास्त्री जी

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