२१२२ १२१२
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सोच
में दोष, शर्मसार है दिल
दोष को
काटता, कटार है दिल |
प्यार
में प्यार ही दिया तुझे मैं
हिज्र
में फ़क्त गम गुसार है दिल |
प्यार
को यदि कभी मना किया है
तो
हसीनों ! गुनाहगार है दिल |
जब कभी
प्यार में हुई कमी तो
दीख
जाता कि बेकरार है दिल |
लो !
मुहब्बत नहीं है नसीब में
क्या
कहूँ यार दागदार है दिल |
इश्क
करना गुनाह हो गया है
गल्त
फहमी का अब शिकार है दिल |
और ऊपर
उछालो’, गेंद है यह
अब समझ
लो लिया उधार है दिल |
धोखा’
खाया हुआ शिकस्त ‘काली’
बन गया
खूब होशियार है दिल |
लाजवाब है कोई जवाब नहीं है। दिल है दिल।
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