Saturday, 2 November 2019

ग़ज़ल


२१२२  १२१२  १२२
सोच में दोष, शर्मसार है दिल
दोष को काटता, कटार है दिल |

प्यार में प्यार ही दिया तुझे मैं
हिज्र में फ़क्त गम गुसार है दिल |

प्यार को यदि कभी मना किया है
तो हसीनों ! गुनाहगार है दिल |

जब कभी प्यार में हुई कमी तो
दीख जाता कि बेकरार है दिल |

लो ! मुहब्बत नहीं है नसीब में
क्या कहूँ यार दागदार है दिल |

इश्क करना गुनाह हो गया है
गल्त फहमी का अब शिकार है दिल |

और ऊपर उछालो’, गेंद है यह 
अब समझ लो लिया उधार है दिल |

धोखा’ खाया हुआ शिकस्त ‘काली’
बन गया खूब होशियार है दिल |

कालीपद 'प्रसाद'

1 comment:

  1. लाजवाब है कोई जवाब नहीं है। दिल है दिल।

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