Friday, 15 November 2019

ग़ज़ल


२२१ २१२१ १२२१ २१२
मिलकर सभी ने मत दिया सरकार के लिए
हो कुछ बिशेष जनता’ के’ उपकार के लिए |

इस इश्क से बहुत हुए’ बरबाद इस जहां
हिम्मत जरुरी’ इश्क के’ इज़हार के लिए |

तू जो गई तो’ आँख में’ अब नींद ही नहीं
आँखे तड़प रही ते’रे’ दीदार के लिए |

दिलदार बेवफा दिया’ धोखा मुझे कभी
पर दिल धड़कता’ है उसी’ दिलदार के लिए |

जो निष्कपट उन्हें ही’ मिला दंड सर्वदा
क्यों ना कठोर दंड हो मक्कार के लिए |

हक़ के लिए कभी नहीं आगे बढ़े कोई
क्यों ना लडे अभी सही अधिकार के लिए |

यह जन्म मृत्यु चक्र बनाया बशर को’ दास
क्या आयगा कभी कोई उद्धार के लिए ?

कालीपद 'प्रसाद'

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