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मिलकर सभी ने मत दिया सरकार के
लिए
हो कुछ बिशेष जनता’ के’ उपकार
के लिए |
इस इश्क से बहुत हुए’ बरबाद इस
जहां
हिम्मत जरुरी’ इश्क के’ इज़हार
के लिए |
तू जो गई तो’ आँख में’ अब नींद
ही नहीं
आँखे तड़प रही ते’रे’ दीदार के लिए |
दिलदार बेवफा दिया’ धोखा मुझे
कभी
पर दिल धड़कता’ है उसी’ दिलदार
के लिए |
जो निष्कपट उन्हें ही’ मिला दंड
सर्वदा
क्यों ना कठोर दंड हो मक्कार के
लिए |
हक़ के लिए कभी नहीं आगे बढ़े कोई
क्यों ना लडे अभी सही अधिकार के
लिए |
यह जन्म मृत्यु चक्र बनाया बशर
को’ दास
क्या आयगा कभी कोई उद्धार के
लिए ?
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