"मैं "
एक शब्द रूप हूँ ......
प्रतिनिधि हूँ उसका
जो अलौकिक है
परलौकिक है
अदृश्य है
अस्पर्शनीय है
किन्तु श्रब्य है
चेतन है
गतिमान है
वह उत्पत्ति का केंद्र है |
भौतिक दृश्य जगत से परे
कौन हैं वहाँ?
मैं कहता हूँ - "मैं हूँ "
तुम कहते हो ---"मैं हूँ "
वह कहता है ......"मैं हूँ "
"मैं " अर्थात अहम् म् म् म् .........म्म्म्म्मम्म्म्म्म् है यह ब्रह्मनाद
"हूँ " अर्थात हुम् .....म् म् म्-------म्म्म्म्म्म्म्म्म् यह भी है ब्रह्मनाद
मैं मैं मैं ................
सब "मैं' मिलकर बनते हैं "हम "
हम अर्थात -हम् म् म्..........म्म्म्म्म्म्म्म्+अ .......अन्तहीन अह्नाद ..
अह्नाद समाहित है ब्रह्नाद में
सबकी उत्पत्ति के मूल में |
ब्रह्म नाद अदृश्य है
यह अस्पर्शनीय है
यह अलौकिक है
यह परलौकिक है
किन्तु यह श्रब्य है
यह चेतन है
यह गतिमान है |
सुन सकते हो, तो सुनो निर्जन में
रखो अंगुली अपने कर्ण मुल में
आँख मुंदकर आजाओ ध्यान मुद्रा में
स्थिर कर चंचल मन को
सुनो ध्यान से " हूँ.... "कार को
यही है "मैं' "हूँ " " अहम् " " हम ' का अन्तिम रूप
यही है हर शब्द का ब्रह्मरूप ,
यह अनन्त है
यह अदृश्य है
यह अविनाशी है
यह सर्वव्यापी -सर्वत्र है
स्वयंभू है
ब्रह्मनाद है ,
सृष्टि का मूल है | अंत भी है |
अहम् आदि है -सृष्टि है
अहम् मध्य है -स्थिति है
अहम् अन्त है -संहार है
अहम् ब्रह्मा विष्णु महेश है
यही है अ -उ -म अर्थात ॐ
सृष्टि स्थिति और शेष
"मैं" में विलीन हैं
ब्रह्मा विष्णु महेश|
कालीपद "प्रसाद"
एक शब्द रूप हूँ ......
प्रतिनिधि हूँ उसका
जो अलौकिक है
परलौकिक है
अदृश्य है
अस्पर्शनीय है
किन्तु श्रब्य है
चेतन है
गतिमान है
वह उत्पत्ति का केंद्र है |
भौतिक दृश्य जगत से परे
कौन हैं वहाँ?
मैं कहता हूँ - "मैं हूँ "
तुम कहते हो ---"मैं हूँ "
वह कहता है ......"मैं हूँ "
"मैं " अर्थात अहम् म् म् म् .........म्म्म्म्मम्म्म्म्म् है यह ब्रह्मनाद
"हूँ " अर्थात हुम् .....म् म् म्-------म्म्म्म्म्म्म्म्म् यह भी है ब्रह्मनाद
मैं मैं मैं ................
सब "मैं' मिलकर बनते हैं "हम "
हम अर्थात -हम् म् म्..........म्म्म्म्म्म्म्म्+अ .......अन्तहीन अह्नाद ..
अह्नाद समाहित है ब्रह्नाद में
सबकी उत्पत्ति के मूल में |
ब्रह्म नाद अदृश्य है
यह अस्पर्शनीय है
यह अलौकिक है
यह परलौकिक है
किन्तु यह श्रब्य है
यह चेतन है
यह गतिमान है |
सुन सकते हो, तो सुनो निर्जन में
रखो अंगुली अपने कर्ण मुल में
आँख मुंदकर आजाओ ध्यान मुद्रा में
स्थिर कर चंचल मन को
सुनो ध्यान से " हूँ.... "कार को
यही है "मैं' "हूँ " " अहम् " " हम ' का अन्तिम रूप
यही है हर शब्द का ब्रह्मरूप ,
यह अनन्त है
यह अदृश्य है
यह अविनाशी है
यह सर्वव्यापी -सर्वत्र है
स्वयंभू है
ब्रह्मनाद है ,
सृष्टि का मूल है | अंत भी है |
अहम् आदि है -सृष्टि है
अहम् मध्य है -स्थिति है
अहम् अन्त है -संहार है
अहम् ब्रह्मा विष्णु महेश है
यही है अ -उ -म अर्थात ॐ
सृष्टि स्थिति और शेष
"मैं" में विलीन हैं
ब्रह्मा विष्णु महेश|
कालीपद "प्रसाद"
© सर्वाधिकार सुरक्षित
आपकी लिखी रचना मुझे बहुत अच्छी लगी .........
ReplyDeleteबुधवार 23/10/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
में आपकी प्रतीक्षा करूँगी.... आइएगा न....
धन्यवाद!
धन्यवाद यशोदा जी ! जरुर
Deleteबहुत सुन्दर है सब कुछ जो लिखा है। डूबकर इतरा कर भाव में भक्ति राग में। अपने निज स्वरूप में।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (22-10-2013) मंगलवारीय चर्चा---1406- करवाचौथ की बधाई में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका आभार रूपचंद्र शास्त्री जी !
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!सादर...!
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteवाह सुन्दर व्याख्या .....
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteशब्द हमारे संबंधों का माध्यम है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteउत्कृष्ट काव्य रचना
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ,,,! बधाई ,,,
ReplyDeleteRECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.
नमन आपके जज्बात को
ReplyDeleteमंगलकामनाएं
सादर
utkrisht rachna
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDeleteवाह क्या बात है! समझो बहार आई
ReplyDeleteॐ ekmatra sabd brahm ... sukun or shnati dene wala..
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteबहुत खूब ... पर कभी कभी मैं अहम भी हो सकता है ... जो दूर ले जाता है अहम् से ...
ReplyDeleteआप सही है, पर "अहम" एक भाव है "मैं " -अहम् भाव नहीं कर्ता है | आभार
Deleteसुन्दर प्रस्तुति "मैं" अहम और अहंकार का दूसरा नाम है
ReplyDeleteइस रचना में ध्यान का प्रयोग भी बताया है जो की बहुत बढ़िया है
ReplyDeleteयदि प्रयोग हो तो अनुभव का अधिक आनंद है !
अनुपम भावों का संगम ....
ReplyDeleteमैं को सार्थक शब्दों में प्रस्तुत किया है ....
ReplyDeleteबहुत ही गहन भाव.... और मैं ही शिव हूँ..... के भाव का अच्छा चित्रण के साथ अभिव्यक्ति
ReplyDelete...................................................................nice
ReplyDeleteउम्दा
ReplyDeleteसुन्दर लिखा
ReplyDeleteगीता का सारांश पढ़, रविकर भाव विभोर |
ReplyDeleteकर्म भक्ति का पथ पकड़, चले ब्रह्म की ओर |
सादर-
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।। त्वरित टिप्पणियों का ब्लॉग ॥
ReplyDeleteआपका आभार रविकर जी !
Deleteसुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteसब 'मैं' मिलकर बनते है हम …अति सुन्दर सार्थक रचना के लिए आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 26/10/2013 को बच्चों को अपना हक़ छोड़ना सिखाना चाहिए..( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 035 )
- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....
उपासना जी आपका आभार !
Deleteवाकई बहुत खूबसूरती से शब्दों का प्रयोग करते हैं आप..
ReplyDeleteसुन्दर लेख
मेरी दुनिया.. मेरे जज़्बात..
निशब्द कर दिया आपकी रचना ने .....
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकारें
nc post sr
ReplyDeleteशानदार अनुभूति परक रचना ।
ReplyDeleteयहाँ भी आपके विचार आमंत्रित हैं >> http://corakagaz.blogspot.in/2013/03/tera-vistaar.html & >> http://corakagaz.blogspot.in/2012/07/blog-post.html
आपके ब्लॉग को ब्लॉग - चिठ्ठा में शामिल किया गया है, एक बार अवश्य पधारें। सादर …. आभार।।
ReplyDeleteनई चिठ्ठी : चिठ्ठाकार वार्ता - 1 : लिखने से पढ़ने में रुचि बढ़ी है, घटनाओं को देखने का दृष्टिकोण वृहद हुआ है - प्रवीण पाण्डेय
कृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
बहुत ही बेहतरीन और सार्थक रचना...
ReplyDeleteलाजवाब...
:-)
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteआपकी यह रचना बहुत ही सुंदर है…
ReplyDeleteमैं स्वास्थ्य से संबंधित छेत्र में कार्य करता हूं यदि आप देखना चाहे तो कृपया यहां पर जायें
वेबसाइट