Wednesday, 16 October 2013

महिषासुर बध (भाग २ )

                                                                                
अपने पूजा पण्डाल की  देवी माता

 जिन्होंने प्रथम भाग नहीं पढ़ा है , उन्हें कहानी के प्रवाह समझने में असुविधा हो सकती है | अत: उनसे  निवेदन है कि वे प्रथम भाग को भी पढ़ लें  तो ज्यादा मजा आयेगा |

महिषासुर बध (भाग २ )
३८
डोलने लगी
पृथ्वी और सागर
वन पर्वत |

३९
सिंह बाहिनी
जय माता भवानी
जय हो देवी |
४०
स्तवन किया
भक्ति से देवगण
महादेवी को |
४१
युद्धाभिमुखी
सुसज्जित कवच
चमके दैत्य |
४२
महिषासुर
क्रोध में दौड़ा ,जहां
भगवती थी |
४३
देखा देवी को
लोकों को प्रकाशित
कर रही थी |
४४.
सर मुकुट
रश्मि फैला रही थी
धरा से नभ |
४५
दशों दिशा को
हजारों भुजाओं से
की आच्छादित |
४६
देवी के साथ
दैत्यों का छिड़ा युद्ध
तदनंतर |
४७
अस्त्रों शस्त्रों के
उन्माद प्रहार से
पूर्ण दिशाएँ |
४८
 चिक्षुर  नाम
सेनापति दैत्य का
हुंकार भरा |
४९
अन्य दैत्यों की
चतुरंगिनी  सेना
लड़ने लगी |
५०
रणभूमि में
देवी बाहन सिंह
मारा दैत्यों को |
५१
अम्बिका देवी
असुरों की सेना में
भयोत्पादक |
५२
प्रलयंकारी
वनों में दावानल
जैसे जला दी |
५३ 
नि;श्वास छोड़े 
प्रगट हुए गणें
हाथ में अस्त्र |
५४ 
असुर नाश 
करे देवी के गण
बाजे नगाड़ा |
५५ 
शंख मृदंग 
युद्ध महोत्सव में
बज रहे थे |
५६ 
तदनन्तर
देवी ने त्रिशूल से 
गदा खड्ग  से ,
 ५७ 
किया संहार 
कोटि महादैत्यों का 
धरती पर |
५८ 
घंटे की नाद 
सुन शत मूर्छित 
दैत्य सैनिक |
५९ 
देवी की शूल 
करे छेद छाती में
दैत्य सेना के |
६० 
रणांगण में 
बाणसमूह वृष्टि 
अभूत पूर्व |
६१ 
किसी का सर 
बिना सर के धड़
धरती शायी |
६२
हाथों में खड्ग 
छिन्न भिन्न हो धड़ 
ललकारते |
6३ 
संग्राम स्थल 
रक्त रंजित माटी
लाशों का ढेर|
६४ 
खून की बही 
बड़ी बड़ी नदियाँ
युद्ध स्थल में |
६५ 
जगदम्बा ने 
संहार कर दिया 
दैत्य सेना को |
६६ 
दैत्यों की सेना 
हताहत अनेक 
चिक्षुर क्रुद्ध |
६७ 
महा युद्ध की 
अम्बिका देवी संग 
बाणों की वर्षा |
६८ 
देवी ने काटे 
चिक्षुर के बाणों को 
अनायास ही|
६९ 
मार गिराया 
सारथी और घोडा 
दुष्ट दैत्य के |
७०
चिक्षुर दैत्य 
धनुष रथ घोडा
सारथी हीन |
७१ 
महा दैत्य ने 
भद्रकाली ऊपर 
चलाया शूल |
७२ 
अम्बिका ने भी 
शूल प्रहार किया 
काटने शूल |
७३ 
चिक्षुर शूल 
सैंकड़ों टुकड़े हों 
चूमा धरती |
७४ 
चिक्षुर का भी 
धज्जियां उड़ गई 
खो दिया प्राण |
७५ 
चिक्षुर मृत 
महिषासुर क्रुद्ध 
चामर मृत |

क्रमशः भाग ३ (अन्तिम भाग )


कालिपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित

30 comments:

  1. वाह वाह वाह
    लाज़वाब हाइकु। जय जय आदि शक्ति जगदम्बा

    ReplyDelete
  2. अद्भुत, अनुपम हायकू ...

    ReplyDelete
  3. इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-17/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -26 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....

    ReplyDelete
    Replies
    1. राजीव कुमार झा जी , आपका बहुत बहुत आभार |

      Delete
  4. सार्थक विचार लिए. सुन्दर हायकू

    ReplyDelete
  5. ७५ हाइकू में दुर्गा चालीसा पढ़ने का
    मौका देने के लिए धन्यवाद और आभार
    सार्थक अभिव्यक्ति
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया विभारानी जी ,कुल हाइकू ११३ है |तीसरा भाग में शेष हाइकू को जरुर पढ़िए ,आभारी रहूँगा |

      Delete
  6. सुन्दर कार्य .. हाइकू के जरिये धर्म के मर्म को साझा करना ..अति उत्तम .. बधाई

    ReplyDelete
  7. हाइकु -कथा एक नै विधा क्या बात है भाई साहब !बहुत सशक्त कथा -मय हाइकु .

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुक्रिया वीरेन्द्र भाई , आप सबका आभार |

      Delete
  8. बहुत ही सुन्दर हाइकू में धर्म का समागम बहुत ही उत्कृष्ट कार्य नमन आपके इस लेखन को

    ReplyDelete
  9. बहुत खूबसूरती से लिखी पौराणिक कथा हाइकु रूप में

    ReplyDelete
  10. उम्दा जानकारी देती हुई पोस्ट.
    शुक्रिया.

    ReplyDelete
  11. हाइकू के माध्यम से कथा का तारतम्य बाखूबी बैठाया है आपने ...
    अप्रतिम ...

    ReplyDelete
  12. आश्चर्यमय वृत्तान्त अद्भुत शिल्प में

    ReplyDelete
  13. काव्य का सशक्त निरूपण।

    ReplyDelete
  14. अद्भुत अभिनव प्रयोग, बधाई...............

    ReplyDelete
  15. बहुत ही सुन्दर। जय माँ भवानी।

    ReplyDelete
  16. आपका ज्ञान एवँ श्रम स्तुत्य है कालीपद जी ! हाईकू की शैली में माँ जगदम्बे की कथा का वाचन अत्यंत विलक्षण अनुभव है ! बधाई आपको !

    ReplyDelete
  17. अद्भुद एवं कालजयी रचना के लिए प्रसाद जी आपका हार्दिक आभार।धन्यवाद।

    ReplyDelete
  18. बहुत ही सुन्दर

    ReplyDelete
  19. अद्भुत हाइकू ,नव प्रयोग .बधाई .

    ReplyDelete