हम-तुम अकेले |
महानगरों में नागरिकों की सुविधा के लिए जोगिंग पार्क होते है | अधिकतर पार्कों में एक कोना बुजुर्गों (सीनियर नागरिक )के लिए बनाया गया है | बुजुर्ग लोग इसी कोने में एकत्र होकर अपने सुख दुःख की बाते करते हैं| हैदराबाद के एक पार्क में बैठ कर एक बुज़ुर्ग दम्पति के जो दुःख दर्द मुझे महसूस हुआ ,उसे मैं इस कविता में ढाला है | यह केवल इनके दर्द नहीं है ,ऐसे अनेक दंपत्ति मेरे आसपास रहते है जिनमे से बहुतों को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ,यह दर्द उनलोगों का भी है |इसे देखकर संयुक्त परिवार के लाभ याद आती है |
आया है हर कोई अकेला
जाना भी है हर को अकेला
किस बात का दुःख है तुम्हे
प्रिये ! जरा सोचकर बताना |
मिला साथ मेरा तुम्हारा
हमने बांधा एक आशियाना,
चूजों के जब पंख होगा
उन्हें तो है उड़ जाना |
लड़की होगी ,ब्याह होगी
जायेगी वह साजन के देश,
लड़का होगा ,पढ़ लिख कर
वो भी जायेगा विदेश |
मैं और तुम रह जायेंगे
जब तक हमें है जीना,
जब होंगे लाचार,अचल
आएगा क्या कोई अपना ?
कौन होगा अपना यहाँ
सिवा मैं तुम्हारे ,तुम मेरे लिए
इस आशियाना में काटेंगे दिन
हम, एक दूजे के लिए |
चित्र गूगल से साभार
कालीपद "प्रसाद"
©सर्वाधिकार सुरक्षित
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (31-10-2013) "सबसे नशीला जाम है" चर्चा - 1415 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी ! देर के लिए खेद है !
Deleteसुंदर !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
दीवाली कि शुभकामनायें आपको भी आदरणीय-
Deleteसुन्दर प्रस्तुति।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : भारत के महान वैज्ञानिक : डॉ. होमी जहाँगीर भाभा
"प्रोजेक्ट लून" जैसे प्रोजेक्ट शुरू होने चाहिए!!
बहुत ही सुंदर और उम्दा.
ReplyDeleteरामराम.
भाव संपूरित सुन्दर श्रृजन
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुती
ReplyDeleteओह ,
ReplyDeleteयह भी भोगना है शीघ्र ...??
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteरहना है तो रह भरोसे अपने ,
ReplyDeleteया उस टेढ़ी टांग वाले कृष्ण कन्हाई के -
न कुछ तेरा न कुछ मेरा ,चिड़िया रैन बसेरा ,
बेटा बेटी बंधू सखा ,सुन कोई न तेरा ,
सिर्फ प्रभु नाम तेरा .
बहुत बढ़िया सर।
वीरेंदर भाई जी ,आपके उपयुक्त टिप्पणी के लिए आभार !
Deleteमर्मस्पर्शी रचना प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार
आज के यथार्थ को चित्रित करती बहुत मर्मस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteजिदगी के कड़वे सच को अभिव्यक्त करती कविता।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सर , आदरणीय को धनतेरस व दीपावली की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteनया प्रकाशन --: 8in1 प्लेयर डाउनलोड करें
बहुत लोगो में तो दम्पति भी बिछुड़ जाते हैं कोई अकेला ही रह जाता है
ReplyDeleteदीपावली की बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनायें
,यथार्थ को चित्रित करती रचना,,
ReplyDeleteRECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना
lajvab / link 4 u sr
ReplyDeletehttp://drpratibhasowaty.blogspot.in/2013/11/9-haiga-animation.html?spref=bl
दोनो हैं तो अकेले कहां,
ReplyDeleteनिभायेंगे साथ जब तक है जान।
आपकी प्रस्तुति वृध्दों के दर्द को समेटे हुए है पर पार तो पाना होगा इससे भी।
आपका आभार उपासना जी !
ReplyDeleteआप सबको बहुत बहुत धन्यवाद और दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteसुंदर, भावपूर्ण
ReplyDelete!! प्रकाश का विस्तार हृदय आँगन छा गया !!
!! उत्साह उल्लास का पर्व देखो आ गया !!
दीपोत्सव की शुभकामनायें !!
.दीपावली की शुभकामनाएं...
ReplyDeleteबहुत सुंदर !!
ReplyDeleteदीपावली कि हार्दिक शुभकामना !!
सच कहा है .. जीवन तो अकेले ही काटना होता है वैसे भी ...
ReplyDeleteदीपावली के पावन पर्व की बधाई ओर शुभकामनायें ...
jeevan ka sach.....hum sabko ek din samna karna hi hai is sach ka
ReplyDelete............बहुत सुन्दर !!
ReplyDeleteएक बार यहाँ भी पधारे !!!!