मिट्टी के खिलौने लेकर
बच्चे ख़ुशी से खेलते हैं
जब चाहे तोड़कर इन्हें
फिर पानी डालकर गूंधते है ,
कच्ची मिट्टी से फिर कोई
एक नया खिलौना गढ़ते हैं l
कितने खिलौने चाहिए ? नहीं पता ,
कैसे खिलौने चाहिए ? नहीं पता ,
गढ़ना और तोडना ,फिर गढ़ना
यही बच्चों का खेल है l
हे कृष्ण मुरारी !
तुम में और बच्चों में
यही तो मेल है .....
बच्चों में और तुम में
किन्तु एक अंतर भी है l
कितना गढ़ा,कितना तोड़ा
खेलकर बच्चे भूल जाते हैं ,
तुम भी गढ़ते हो ,तोड़ते हो
तोड़कर फिर गढ़ते हो
लेकिन हर तोड़ जोड़ का
तुम सब हिसाब रखते हो l
हर नए पुतले में प्राण फूंकते हो
प्राण फूंककर कुछ निर्देश देतो हो
किसको क्या निर्देश ,तुम ही जानते हो l
कितने खिलौने बनाये तुमने
न जाने किस में कैसा रंग भरा
टूटे, फूटे, मुर्दे,जिन्दे खिलौने से
भरा पड़ा है जग सारा l
छोटे अलग ,बड़े अलग
है अलग सबके आकृति प्रकृति
कुछ तो है सूक्ष्म इतना
नहीं देख पाती हमारी दृष्टि l
सब खिलौने प्रिय है तुम्हारे
पर सब में प्रिय है इंसान
इन्हें दिया है अलौकिक शक्ति
सोचने समझने की वरदान l
सोचा इंसान वुद्धिमान हैं हम
रब का पता लगा लेंगे
जनम मृत्यु का राज क्या है ? नहीं जानते
अमरता का क्या पता लगायेंगे ?
कालीपद 'प्रसाद'
कालीपद 'प्रसाद'
©सर्वाधिकार सुरक्षित
सभी खिलौने मन से खेलें।
ReplyDeletesundar prastuti ,man se sundar ,pyare khilone
Deleteसम्मानित सर बहुत बेहतरीन कोमल रचना। जो बच्चे के हृदय से लेकर एक परिपक्व इंसान तक के हृदय उदगार को दर्शा रही है। साथ ही साथ मनोदशा को उल्लेखित कर सोचने पे विवश करा रही है।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
सादर
बहुत शानदार रचना |
ReplyDeleteआशा
प्रभू जब बनाते हैं तो मुकम्मल ही बनाते हैं ... इन्सान समझ नहीं पाते ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.....आभार
ReplyDeletewww.omjaijagdeesh.blogspot.com
गुड्डा गुरिया रचित कै, रचइत हेले हेल ।
ReplyDeleteको हिय हेरे हेर दै, को हेरन कर मेल ।८३०।
भावार्थ : -- नर-नारी स्वरूप गुड्डे गुडिया की रचना कर रचयिता खेल खिलवाड़ कर रहा है। किसी के ह्रदय को पुकार दे कर वापस बुला लेता है, और किसी के ह्रदय में स्वयं हिलमिल जाता है ॥
बहुत सुन्दर दोहे नीतू जी ,क्या मैं जान सकता हूँ यह किसके दोहे हैं ?
Deleteसुंदर रचना !
ReplyDeleteयही अलौकिक शक्ति सिर्फ ईश्वर के पास है !
ReplyDeleteRECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.
बहुत ही गहन गंभीर चिंतन से सजी अनुपम रचना ! बहुत खूब !
ReplyDeleteबड़े करीने से अभिव्यक्ति दी है...
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार रविकर जी !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार दर्शन जी !
ReplyDeleteसार्थक सटीक बात कही है रचना में, बहुत बढ़िया !
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक और सटीक रचना..
ReplyDeleteइंसान को दी काम करने की (कर्म करने की )आज़ादी '
ReplyDeleteहो गया वह बरबंड ,
अंडबंड करे कर्म,
दोष दे भगवान् को .
बढ़िया प्रस्तुति .
जन्म और मृत्यु का एक मक़सद है। आपने यही पता लगा लिया है। यह भी बड़ी बात है।
ReplyDeleteआप इस राज़ की खोज में चले तो सही। कई बार सामने की बात पर ग़ौर न किया जाए तो वे रहस्य बनी रहती हैं।
अच्छे भाव।
बहुत ही सुंदर और दैवीय रचना.
ReplyDeleteरामराम.
अनूठी रचना
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteसुन्दर रचना प्रस्तुत करने के लिए आपका धन्यवाद।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : ब्लॉग से कमाने में सहायक हो सकती है ये वेबसाइट !!
ज्ञान - तथ्य ( भाग - 1 )
सुन्दर रचना प्रस्तुत करने के लिए आपका धन्यवाद।।
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kalpana ki bahut hi sundar uadaan ....
ReplyDeleteumda rachna
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 05/10/2013 को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 017 तेरी शक्ति है तुझी में निहित ...< a href = http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/>
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आभार उपासना जी !.......जरुर
ReplyDeleteअच्छी रचना..
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत अच्छी जीवन का सार समझाती रचना खिलौने बनते हैं फिर टूटते हैं यही जीवन की अंतिम सच्चाई है ,बहुत बढ़िया प्रस्तुति ,बधाई आपको
ReplyDeleteबच्चों के भोलेपन पर बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteभाव से भरी सुन्दर कविता.
ReplyDeleteबहुत ही गहन भाव के साथ अभिव्यक्ति
ReplyDeletegahara bhaaw liye rachna...ati sunder
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपकी यह रचना बहुत ही सुंदर है…
ReplyDeleteमैं स्वास्थ्य से संबंधित छेत्र में कार्य करता हूं यदि आप देखना चाहे तो कृपया यहां पर जायें
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