Tuesday, 1 October 2013

मिट्टी का खिलौना !


मिट्टी के खिलौने लेकर 
बच्चे ख़ुशी से खेलते हैं 
जब चाहे तोड़कर  इन्हें
फिर पानी डालकर गूंधते है  ,
कच्ची मिट्टी से फिर कोई 
एक नया खिलौना गढ़ते हैं l 
कितने खिलौने चाहिए ? नहीं पता ,
कैसे खिलौने चाहिए ? नहीं पता ,
गढ़ना और तोडना ,फिर गढ़ना 
यही बच्चों का खेल है l 

हे कृष्ण मुरारी !
तुम में और बच्चों में 
यही तो मेल है .....
बच्चों में और तुम में
किन्तु एक अंतर भी है l
कितना गढ़ा,कितना तोड़ा
खेलकर बच्चे  भूल जाते हैं ,
तुम भी गढ़ते हो ,तोड़ते हो 
तोड़कर फिर गढ़ते  हो
लेकिन हर तोड़ जोड़ का 
तुम सब हिसाब रखते हो l 
हर नए पुतले में प्राण फूंकते हो 
प्राण फूंककर कुछ निर्देश देतो हो
किसको क्या निर्देश ,तुम ही जानते हो l 

कितने खिलौने बनाये तुमने 
न जाने किस में कैसा रंग भरा 
टूटे, फूटे, मुर्दे,जिन्दे खिलौने से 
भरा पड़ा है जग सारा l 
छोटे अलग ,बड़े अलग 
है अलग सबके आकृति प्रकृति 
कुछ तो है सूक्ष्म इतना 
नहीं देख पाती हमारी दृष्टि l 

सब खिलौने प्रिय है तुम्हारे 
पर सब में प्रिय है इंसान 
इन्हें दिया है अलौकिक शक्ति 
सोचने समझने की वरदान l

सोचा इंसान वुद्धिमान हैं हम 
रब का पता लगा लेंगे 
जनम मृत्यु का राज क्या  है ? नहीं जानते
अमरता का क्या पता लगायेंगे ?

कालीपद 'प्रसाद'


©सर्वाधिकार सुरक्षित


37 comments:

  1. सभी खिलौने मन से खेलें।

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    1. sundar prastuti ,man se sundar ,pyare khilone

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  2. सम्मानित सर बहुत बेहतरीन कोमल रचना। जो बच्चे के हृदय से लेकर एक परिपक्व इंसान तक के हृदय उदगार को दर्शा रही है। साथ ही साथ मनोदशा को उल्लेखित कर सोचने पे विवश करा रही है।
    सुन्दर प्रस्तुति
    सादर

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  3. बहुत शानदार रचना |
    आशा

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  4. प्रभू जब बनाते हैं तो मुकम्मल ही बनाते हैं ... इन्सान समझ नहीं पाते ...

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  5. सुन्दर भावपूर्ण रचना

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  6. सुन्दर अभिव्यक्ति.....आभार
    www.omjaijagdeesh.blogspot.com

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  7. गुड्डा गुरिया रचित कै, रचइत हेले हेल ।
    को हिय हेरे हेर दै, को हेरन कर मेल ।८३०।

    भावार्थ : -- नर-नारी स्वरूप गुड्डे गुडिया की रचना कर रचयिता खेल खिलवाड़ कर रहा है। किसी के ह्रदय को पुकार दे कर वापस बुला लेता है, और किसी के ह्रदय में स्वयं हिलमिल जाता है ॥

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    1. बहुत सुन्दर दोहे नीतू जी ,क्या मैं जान सकता हूँ यह किसके दोहे हैं ?

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  8. यही अलौकिक शक्ति सिर्फ ईश्वर के पास है !

    RECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.

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  9. बहुत ही गहन गंभीर चिंतन से सजी अनुपम रचना ! बहुत खूब !

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  10. बड़े करीने से अभिव्यक्ति दी है...

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  11. आपका बहुत बहुत आभार रविकर जी !

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  12. बहुत बहुत आभार दर्शन जी !

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  13. सार्थक सटीक बात कही है रचना में, बहुत बढ़िया !

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  14. बहुत ही सार्थक और सटीक रचना..

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  15. इंसान को दी काम करने की (कर्म करने की )आज़ादी '

    हो गया वह बरबंड ,

    अंडबंड करे कर्म,

    दोष दे भगवान् को .

    बढ़िया प्रस्तुति .

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  16. जन्म और मृत्यु का एक मक़सद है। आपने यही पता लगा लिया है। यह भी बड़ी बात है।
    आप इस राज़ की खोज में चले तो सही। कई बार सामने की बात पर ग़ौर न किया जाए तो वे रहस्य बनी रहती हैं।
    अच्छे भाव।

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  17. बहुत ही सुंदर और दैवीय रचना.

    रामराम.

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  18. बहुत ही भावपूर्ण रचना

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  19. सुन्दर रचना प्रस्तुत करने के लिए आपका धन्यवाद।।

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  21. kalpana ki bahut hi sundar uadaan ....

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  22. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 05/10/2013 को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 017 तेरी शक्ति है तुझी में निहित ...< a href = http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/>
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  23. आभार उपासना जी !.......जरुर

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  24. सुन्दर रचना

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  25. बहुत अच्छी जीवन का सार समझाती रचना खिलौने बनते हैं फिर टूटते हैं यही जीवन की अंतिम सच्चाई है ,बहुत बढ़िया प्रस्तुति ,बधाई आपको

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  26. बच्चों के भोलेपन पर बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !

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  27. भाव से भरी सुन्दर कविता.

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  28. बहुत ही गहन भाव के साथ अभिव्यक्ति

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  29. gahara bhaaw liye rachna...ati sunder

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  30. This comment has been removed by the author.

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  31. आपकी यह रचना बहुत ही सुंदर है…
    मैं स्वास्थ्य से संबंधित छेत्र में कार्य करता हूं यदि आप देखना चाहे तो कृपया यहां पर जायें
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