गुस्सा न तो दीमक है
न वह शीत ज्वर है ,
यह तो सैलाब है .........
जो तोड़ देता है वुद्धि का बांध
उखाड़ देता है विवेक का जड़
मनुष्य को बना देता है हिंस्र पशु
तोड देता है रिश्ते नाते का बंधन सारे
सब को कर देता है निमग्न
बाड से जैसे नदी के दो किनारे |
मुँह बन जाता है अक्षय तरकश
निकलता है तीक्ष्ण शब्द वाण
भेदता है विपक्ष के ह्रदय पटल
लेने को आतुर उसका प्राण
किन्तु जब थमता है गुस्सा का ज्वर
मुँह से निकले शब्द वाण का
सोच नहीं पाता है कोई उत्तर
पश्चाताप का आंसू चाहे भर दे नदी सारे
नहीं भर पाता है जो घाव दिए हैं गहरे |
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
न वह शीत ज्वर है ,
यह तो सैलाब है .........
जो तोड़ देता है वुद्धि का बांध
उखाड़ देता है विवेक का जड़
मनुष्य को बना देता है हिंस्र पशु
तोड देता है रिश्ते नाते का बंधन सारे
सब को कर देता है निमग्न
बाड से जैसे नदी के दो किनारे |
मुँह बन जाता है अक्षय तरकश
निकलता है तीक्ष्ण शब्द वाण
भेदता है विपक्ष के ह्रदय पटल
लेने को आतुर उसका प्राण
किन्तु जब थमता है गुस्सा का ज्वर
मुँह से निकले शब्द वाण का
सोच नहीं पाता है कोई उत्तर
पश्चाताप का आंसू चाहे भर दे नदी सारे
नहीं भर पाता है जो घाव दिए हैं गहरे |
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
गुस्सा, सब कुछ तबाह कर देता है ! अंत की 2 पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी बन पड़ी हैं !
ReplyDeleteSach Kaha Aapne. Very fine post.
ReplyDeleteWelcome to my Post.
सार्थक लेखन
ReplyDeleteआपका आभार कुलदीप ठाकुर जी !
ReplyDeleteसही लिखा है आपनें !
ReplyDeleteबढ़िया चिन्तन।
ReplyDeleteगुस्सा सबसे पहले अपना ही नुक्सान करता है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति
गुस्से पे कंट्रोल जरूरी है ... ये सैलाब सब कुछ ध्वस्त केर देता है ...
ReplyDeleteअति सुन्दर यथार्थ !
ReplyDeleteगुस्से को जिसने जीत लिया समझ लो जग जीत लिया
ReplyDeleteसार्थक सच को उजागर करती सुन्दर रचना ---
सादर ---
आग्रह है --
भीतर ही भीतर -------
ReplyDeleteपश्चाताप का आंसू चाहे भर दे नदी सारे
नहीं भर पाता है जो घाव दिए हैं गहरे |
सुन्दर पंक्तियाँ |शानदार रचना |
बहुत सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteSab khatam kar deta hai gussa ek minute me...saarthak rachna!!!
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