भाग २ से आगे
माँ चंद्रघंटा |
आप सबको शारदीय नवरात्रि ,दुर्गापूजा एवं दशहरा
का अग्रिम शुभकामनाएं ! गत वर्ष इसी समय मैंने महिषासुर बध की कहानी को
जापानी विधा हाइकु में पेश किया था जिसे आपने पसंद किया और सराहा | उससे
प्रोत्साहित होकर मैंने इस वर्ष "शुम्भ -निशुम्भ बध" की कहानी को जापानी
विधा "तांका " में प्रस्तुत कर रहा हूँ | इसमें २०१ तांका पद हैं !
दशहरा तक प्रतिदिन 20/२१ तांका प्रस्तुत करूँगा |आशा है आपको पसंद आयगा
|नवरात्रि में माँ का आख्यान का पाठ भी हो जायगा !
45
शुम्भ अथवा
पराक्रमी निशुम्भ
स्वयं पधारे
जीतकर मुझको
मुझसे व्याह करे |
४६
दूत ने कहा
देवी तुम दम्भ में
बात न करो
कौन ऐसा पुरुष
जीते शुम्भ निशुम्भ ?
४६
छोडो घमंड
भीडो न शुम्भ संग
हारोगी जंग
तुम अकेली नारी
कैसे तुम लड़ोगी ?
४७
देव दानव
युद्ध में सब हारे
विजयी शुम्भ
तुम नारी होकर
कैसे करोगी युद्ध ?
४८
कहता हूँ मैं
शुम्भ की आज्ञा मान
रक्ष अपना
मान और सम्मान
मान शुम्भ को पति |
४९
हारने पर
जाओगी चलकर
खोकर मान
पकड़ेंगे केश वे
घसीटेंगे रास्ते में |
50
कहा देवी ने
शुम्भ पराक्रमी है
कहो उनसे
नहीं तोड़ सकती
डरकर प्रतिज्ञा |
५१
शुम्भ निशुम्भ
विजयी दैत्य द्वय
करे निर्णय
करे वही जो सही
उचित जान पड़े |
धूम्रलोचन बध !
५२
निराश दूत
सुन देवी कथन
क्रोध में आया
दैत्यराज को सब
विस्तार से बताया |
५३
कुपित हुआ
वचन सुनकर
शुम्भ असुरा
दैत्य सेनापति को
तुरंत बुलवाया
५४
धूम्रलोचन
सेनापति हाज़िर
शुम्भ ने कहा
अपनी सेना साथ
युद्ध में जाओ तुम |
५५
दुष्टा के केश
पकड़कर तुम
लेकर आओ
बलपूर्वक उसे
घसीटकर लाओ |
५६
शुम्भ की आज्ञा
धूम्रलोचन दैत्य
पाकर चले
साठ हज़ार सेना
साथ लेकर चले |
५७
देवी थीं जहाँ
पहुंचकर वहाँ
कहा देवी को...
नारी ! तू अहंकारी !
ललकारा देवी को |
५८
स्वेच्छा से तुम
प्रसन्नता पूर्वक
मेरे मालिक
शुम्भ निशुम्भ पास
चलो स्वामी समीप |
५९
इन्कार पर
झोंटा पकड़कर
मैं ले जाऊँगा
बुद्धिमती नारी हो
वक्त समझती हो |
60
देवी ने कहा
दैत्य के सम्राट ने
तुम्हे भेजा है
स्वयं हो बलवान
सोचो कुछ निदान |
६१
तुम्हारे साथ
सेना भी है विशाल
मेरा क्या बस ?
क्या कर सकती हूँ ?
घसीटो बल पूर्वक |
62
धूम्रलोचन
सुन देवी वचन
क्रोधित हुआ
दौड़ा उनकी ओर
देवी हुंकार किया ....
६३
देवी को देख
धूम्रलोचन दैत्य
हुंकार भरा
क्रोधित देवी दृष्टि
दैत्य को भष्म किया |
नवरात्रि और दुर्गापूजा की हार्दिक शुभकामनाएं
क्रमश:
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
तांका विधा में इस पौराणिक कथा को इतनी कुशलता से बाँध कर आपने इतिहास रचा है ! बहुत-बहुत बधाई !
ReplyDeleteआपका आभार साधना जी !
ReplyDeleteBahut sunder likha hai aapne taanka vidha k sunder prayog... Saarthak prastuti.. Padh kar aanand aa gya :)
ReplyDeletebahut sundar kavymay shaptshti ....
ReplyDeleteआपका आभार !
Deleteबढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteBeautiful post..
ReplyDeleteAapko bhi navratri ki shubhkamnaein :)
waah kya baat hai..apki kla sammanniya hai...
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