आप सबको शारदीय नवरात्री ,दुर्गापूजा एवं दशहरा
का अग्रिम शुभकामनाएं ! गत वर्ष इसी समय मैंने महिषासुर बध की कहानी को
जापानी विधा हाइकु में पेश किया था जिसे आपने पसंद किया और सराहा | उससे
प्रोत्साहित होकर मैंने इस वर्ष "शुम्भ -निशुम्भ बध" की कहानी को जापानी
विधा "तांका " में प्रस्तुत कर रहा हूँ | इसमें २०१ तांका पद हैं !
दशहरा तक प्रतिदिन 20/२१ तांका प्रस्तुत करूँगा |आशा है आपको पसंद आयगा नवरात्री में माँ का आख्यान का पाठ भी हो जायगा !
भाग ३ से आगे
६४
क्रोध में भरी
विशाल दैत्य सेना
चतुर्दिशा से
जगदम्बा को घेरा
धीर वुद्धि गंभीरा |
६५
जगदम्बा ने
दैत्य सैन्य दलन
शक्ति से किया
देवी वाहन सिंह
दैत्यों का नाश किया |
६६
पंजो से मार
किया बहु संहार
दैत्यों की सेना
नखों से कितनों के
पेट ही फाड़ डाले |
६७
सेना संहार
जानकर असुर
क्रोधित हुआ
चंड -मुंड नामक
महादैत्यों को हांका |
६८
हे चंड -मुंड
बड़ी सेना लेकर
तुम दोनों भी
युद्ध भूमि में जाओ
उसे घसीट लाओ |
६९
दम्भी देवी को
झोंटे पकड़कर
या बांधकर
शीघ्र यहाँ ले आओ
देर ना करो जाओ |
70
चंड -मुंड बध
७१
तदनन्तर
शुम्भ आज्ञा लेकर
चंड -मुंड की
चतुरंगिनी सेना
रणभूमि चल पडा |
७२
सुवर्णमय
उच्च हिम शिखर
हिमालय के
दैत्यों ने सिंह पर
बैठी देवी को देखा |
७३
मन्द मन्द वे
मुस्कुरा रही थी
रहस्यमयी |
उद्योग किया दैत्य
देवी को जो धरना था |
७४
तत्परता से
धनुष तान लिया
किसी ने शूल
कुछ दैत्य देवी को
घेर खड़े हो गए |
७५
भगवती भी
क्रोध में काली पड़ी
हो गई टेढ़ी
ललाट के भौंहे भी
कारण क्रोध अति |
७६
हुई प्रगट
विकृत मुखी काली
पास हाथ में
विचित्र खड्ग अस्त्र
और तलवार भी |
७७
विभूषित थी
नरमुंड माला से
चर्म की साडी
परिधान उनकी
विकराल मुखी थी |
७८
विशाल मुख
हड्डियों का ढांचा था
सुखा शरीर
भयंकर दर्शन
लपलपाते जिव्हा |
७९- ८०
आँखे गहरी
भीतर को धंसी थी
कुछ लाल थी
अपनी गर्जना से
सम्पूर्ण दिशाओं को .....
गूंजा रही थी
शत्रु दैत्यों का बध
कर रही थी |
वे कालिका देवी थी
दैत्यों पर भारी थी |
८१
घोड़े ओ हाथी
रथ समेत रथी
मुँह में डाल
भयानक रूप से
सब चबा डालती |
८२
कालिका देवी
सारी दैत्य सेना को
मार गिराया
दांतों से पीस डाली
अस्त्रों से काट डाली |
८३
देखा चंड ने
अत्यंत भयानक
काली देवी को
दौड़ा उनकी ओर
पकड़ने देवी को |
८४
बाणों की वर्षा
महादैत्य मुंड ने
देवी पर की
चक्रों से भी देवी को
वे आच्छादित किया |
नवरात्रि और दुर्गापूजा का हार्दिक शुभकामनाएं !
क्रमशः.......
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
बहुत ही सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteनवरात्रों कि हार्दिक शुभकामनाएँ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (28-09-2014) को "कुछ बोलती तस्वीरें" (चर्चा मंच 1750) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
शारदेय नवरात्रों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका आभार रूपचंद्र शास्त्री जी !
ReplyDeleteबहुत खूब सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteBahut sunder prastuti....navratro ke dino me yah stuti padhna aanand de raha hai !!!
ReplyDeleteविदेशी विधा देशी वंदना गजब बहुत बहुत शुभकामनाएं
ReplyDeleteबेहतरीन लिखा है आपने
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और प्रभावी प्रस्तुति...
ReplyDeleteअनुपम प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत अनुपम प्रयास कि आप संस्कारों को आज की भाषा में कह कर नए वक्त के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। आपको इसके लिए मेरी तरफ धन्यवाद काली जी। स्वयं शून्य
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