वे ज़ख्म देते हैं ,मैं मुस्कुराता
हूँ
वे खुश होते हैं ,मैं रिश्ता निभाता हूँ |
सभी रिस्ते गए थे टूट बहुत पहले वे खुश होते हैं ,मैं रिश्ता निभाता हूँ |
रिवाजों का ही" ढोए बोझ जाता हूँ |
मुसीबत में लोग गधे को बाप कहते है
इसी उम्मीद से गधे की जिंदगी जी रहा हूँ |
किस्मत कहते हैं किसको ,मुझे नहीं पता
मैं तो अपना कर्म का फल भोग रहा हूँ |
शब्द के अथाह सागर में गोता लगाता हूँ
मन पाखी को भाता है शब्द वही कहता हूँ |
पूजता हूँ ईश्वर ,अल्लाह ,पाने उनके 'प्रसाद '
आजतक किसने पाया ,उसको ही ढूंढ़ रहा हूँ |
(c) कालीपद "प्रसाद "
लाजवाब अतिसुन्दर...
ReplyDeleteअच्छी भावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !
इश्वर का होना महसूस किया जाता है ... ढूँढने से मिल ही जाता है ...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ...
अति सुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ! हिन्दी-दिवस पर वधाई ! यह देश का दुर्भाग्य है कि भारत की कोइ भी राष्ट्र भाषा ही नहीं है | राज-भाषा दसे जी बहलाया गया है ! सभी मित्रों से आग्रह है कि इस विषय में क्या किया जा सकता है, सलाह दें !
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वाह...सुन्दर और सार्थक पोस्ट...
ReplyDeleteसमस्त ब्लॉगर मित्रों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@हिन्दी
और@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
भावपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteअति सुंदर।
सुन्दर पोस्ट है आपकी शुक्रिया आपकी निरंतर उत्साह वर्धक टिप्पणियों का।
ReplyDeleteनयी भाव भूमि के सकारात्मक रचना है आपकी ,
ReplyDeleteSunder prastuti hai aapki....!!
ReplyDeletesunder rachna
ReplyDeleteachha laga padhna
shubhkamnayen