Friday, 12 September 2014

दिल की बातें ***






वे ज़ख्म देते हैं  ,मैं  मुस्कुराता हूँ 
वे खुश होते हैं ,मैं रिश्ता निभाता हूँ |
सभी रिस्ते गए थे टूट बहुत पहले 
रिवाजों का ही" ढोए बोझ जाता हूँ |
मुसीबत में लोग गधे को बाप कहते है 
इसी उम्मीद से गधे की जिंदगी जी रहा हूँ |
किस्मत कहते हैं किसको ,मुझे नहीं पता
मैं तो अपना कर्म का फल भोग रहा हूँ |
शब्द के अथाह सागर में गोता लगाता हूँ
मन पाखी को भाता है शब्द वही कहता हूँ | 
पूजता हूँ ईश्वर ,अल्लाह ,पाने उनके 'प्रसाद '
आजतक किसने पाया ,उसको ही ढूंढ़ रहा हूँ | 


(c) कालीपद "प्रसाद "

11 comments:

  1. लाजवाब अतिसुन्दर...

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  2. अच्छी भावपूर्ण रचना !
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !

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  3. इश्वर का होना महसूस किया जाता है ... ढूँढने से मिल ही जाता है ...
    भावपूर्ण रचना ...

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  4. सुन्दर प्रस्तुति ! हिन्दी-दिवस पर वधाई ! यह देश का दुर्भाग्य है कि भारत की कोइ भी राष्ट्र भाषा ही नहीं है | राज-भाषा दसे जी बहलाया गया है ! सभी मित्रों से आग्रह है कि इस विषय में क्या किया जा सकता है, सलाह दें !
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  5. वाह...सुन्दर और सार्थक पोस्ट...
    समस्त ब्लॉगर मित्रों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@हिन्दी
    और@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

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  6. भावपूर्ण प्रस्तुति
    अति सुंदर।

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  7. सुन्दर पोस्ट है आपकी शुक्रिया आपकी निरंतर उत्साह वर्धक टिप्पणियों का।

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  8. नयी भाव भूमि के सकारात्मक रचना है आपकी ,

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  9. Sunder prastuti hai aapki....!!

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  10. sunder rachna

    achha laga padhna

    shubhkamnayen

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